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Showing posts from 2019

बेबस बहुत है इंसा

मेरे पास है

एक हथेली और बढ़ा लेती है

कभी ना लिखने का भी दिल करता है

मेरे जलसे में तुम भी आना

मेरा दिल खानाबदोशों की बस्ती में

देखा है

मेरी स्याह काली रात में एक जुगनू जगमगाया है

सस्ती लिखावट

यू तो हँस लेता हू

गुजारिश

रेशम की तारे...

ये लो एक ओर शहर छोड़ चला मै

पलके कुछ भारी सी लगती है

कभी तो धूप होगी

मेरे दिल के खाली कनस्तर में, एक रात छुपी बैठी है

वो इक रोज़ आज भी आया था

मेरे मन के किनारो पे

वो दरवाज़ा खुला रखती है

ये आज ना पूछो

मैं घर का वो सामान जो पीछे छूट गया

की मेरी ईमानदारी के क़सीदे कुछ यू पढ़े गए

मैं लिखूंगा

वो जो रेत का एक टीला हुआ करता था

मैं सूरज कल लेकर आऊँगा

इक्क बकरी का मेमना

मेरा पर्यावाची

हर धूप की एक छांव होती है

Ek adna sa sach