यू तो हँस लेता हू

यू तो हँस लेता हूं, पर दर्द बड़ा है सीने में
याद आ जाती है वो बस कभी कभी,
वैसे रखा भी क्या है पीने में...
बन ख्वाब सा वो सजती है, गलियारे मेरे नैनों के
कुछ दूर खड़ा बस देख लेता हू,
वैसे रखा भी क्या है पास जाने में...
बन पतंगा सा सहर उठता हू
बस एक शम्मा की प्यास भुजाने में
वो मुड के एक बार देख लेती है,
बस इतना बडा है हर्जाने में...

बूत सा बस रह जाता हू
तेरी इश्क़-ए-मज़ार सिरहाने पे
बस कभी करवट, कभी मन बदल लेता हू,
वैसे रखा भी क्या है नींद आने में...
की थमे रास्ते पे, थमा वक़्त सा हो जाता हू
ठहरे कभी नब्ज़ तोह बस बहाने में
वो आकर मेरा नाम कबूल ले,
बस इतना बडा है मेरे जनाज़े में...

की हमने पैमानों में नाप दिया है दर्द सारा
इतना भी नही है गमगीन ये ज़माना
ये तो पैमानों की रंजिश समझो
जो लुटा बैठे नाम ज़माने में
न लूटी साकी, न लूटी बोतल,
लूटी मोहब्त बीच महखाने में...

वक़्त बे वक़्त आजाता है वो मौसम
नम हवा और मुँह से भाप फुस-फुसाने में
की याद आ जाता है तेरी गली का वो मोड़,
रुके थे कारवाँ जहा कभी किसी ज़माने में...

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