ये लो एक ओर शहर छोड़ चला मै
कर लिए है लश्कर तैयार मैंने
खीच दी है चढ़ाई अज्ञात पर मैंने
अब चुप्पी के शंखनाद ये गली बजायेगी
लूट लिए है इसकी संघ्या के अलंकार मैंने
एक और शहर, एक और गली
कर के दिल भारी कर दी रुक्सत मैंने
जिन गुफाओं में मिली थी पनाहे मुझे
यादो की तस्वीरे छोड़े जा रहा हू, जिन्हें बनाया मैंने
मिल रहा हू आज एक आखिरी बार
गली के उस मोड़ को, जिसे मोड़ा कई बरस मैंने
कई चिठियां आकर मिली मुझे इस मोड़ से
बिना पते जो लिखी थी और बंद की थी आँसुओ से मैंने
की ये तो मैं या गली मेरी जानती है
की बोए कितने गुलाब और काँटे कितने काटे मैंने
छट गये थे मंडी में सुख सारे
मेरी बारी में तो सिर्फ दुख छांटे मैंने
ये लो एक ओर शहर छोड़ चला
जहा खुद की खुराक खिला कर जोते थे हल मैंने
की अब कूंचों की बाते सुनेगी गली मेरी
की अगर तुझ से न रुठ के गया वो, तो क्या कोई खता की मैंने?
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