की मेरी ईमानदारी के क़सीदे कुछ यू पढ़े गए

की मेरी ईमानदारी के क़सीदे कुछ यू पढ़े गए
लोग कहते उन्हें सब मिला, बस मौके न मिल पाए

चाय की चुस्कियों के बीच अक्सर काम में दिखते थे
नाम तो काफी बनाया, मेज़ के नीचे दराज़ न बना पाए

एक पुराना स्कूटर हुआ करता था उनके पास
और दूसरा उसूल बहुत थे, बस मक्कारी की दुकान पे उधार न चला पाए

उनके घर के दर-दरीचे लकड़ी के थे
ज़रूरत के लम्हे फिर भी उनमे दीमक न लगा पाए

रात की चुप को कई बार उनके मसलो ने तोड़ा था
पर दिन के उजाले में, ख्वाहिशो के पैर दहलीज़ न लांघ पाए

गर्मियों की छुटियो में, स्लीपर की टीकट से घर जाते थे
उनके तो अरमान भी ऐ सी में सफर न कर पाए

वो जो सालो में बढ़ता था उनका महँगाई भत्ता
दिनों की खलिश दिंनो में न सिमटा पाए

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