मैं घर का वो सामान जो पीछे छूट गया

आज भी तो वो मेज़ पड़ी होगी उस कोने में
और होगा सब सामान जो उसपे रखते थे,
शायद आपस में कहते होंगे, न जाने, क्यों ये दर रूठ गया
मैं घर का वो सामान जो पीछे छूट गया

कभी गली आती होगी मेरे दरवाज़े, पूछने,
कहा चला गया जो मापता था मेरे सीने को,
कुछ तोह बताओ, आखिर कोई तोह बताओ, कौन ये लश्कर लूट गया
मैं घर का वो सामान जो पीछे छूट गया

एक सोफा, दो दीवान और चार कुर्सियां
गिरफ्तारी दे दी होगी सबने गर्द के हवाले,
मायूस से सोचते होंगे, आखिर कौन पिला ये कड़वा घूट गया
मैं घर का वो सामान जो पीछे छूट गया

बक्सों और सूटकेसों की कतारों में भी, बेरूखी देखी गयी होगी
जो कपड़ा न उनपे मरा होगा, ज़र्द-शीन तो उनकी भी पलके हुई होंगी
उतरती पेंट की परतो पे, उन्होंने भी तो कराहा होगा,
की कोतुहल भरे वरांडे में, आखिर कैसे ये चुप का घड़ा फूट गया,
मैं घर का वो सामान जो पीछे छूट गया

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