मैं लिखूंगा
मैं सरल लिखूंगा, मैं ज़िन्दगी लिखूंगा,
मैं बहती कश्ती और थमा किनारा लिखूंगा
मैं आग लिखूंगा, मैं पानी लिखूंगा,
कुछ तेरे सीने की, कुछ मेरे की कहानी लिखूंगा
मैं सुबह लिखूंगा, मैं शाम लिखूंगा,
कुछ आगाज़ और कुछ मंज़िलो के नाम लिखूंगा
मैं हस्ता लिखूंगा, मैं रोता लिखूंगा,
बहुत सी गरीबी और थोड़ा अमीर होता लिखूंगा
मैं फर्श लिखूंगा, मैं अर्श लिखूंगा,
जो कम कर दे ये फासला वो लब्ज़ लिखूंगा
मैं वक़्त लिखूंगा, मैं बेवक़्त लिखूंगा,
ज़िन्दगी के दिए लम्हे सख़्त लिखूंगा
मैं नादान लिखूंगा, मैं होशियार लिखूंगा,
रास्ते में मिले यार अय्यार लिखूंगा
मैं नमकहराम लिखूंगा, मैं ख़ुदार लिखूंगा,
जो क़ी है गलतिया, उनका ब्यौरा दरवाज़े बाहर लिखूंगा
मैं बढ़ती उमर लिखूंगा, मैं बचपन लिखूंगा,
जहा मैं जीता वो कम, जहा मैं हारा वो बार-बार लिखूंगा
मैं तन के लिबास कम, और नंगी आंखे ज़यादा लिखूंगा,
जो नोचती है औरत की छाती, तेरी वो नज़रे नापाक लिखूंगा
मैं अंगार लिखूंगा, मैं उसका श्रृंगार लिखूंगा,
जिस ज़माने ने लूटी इज़्ज़त उसकी, उसका वहशी कारोबार लिखूंगा
मैं थोड़ा झूठ लिखूंगा, फिर थोड़ा सच लिखूंगा,
देखूंगा की पहचान पाते हो, ऐसा होकर ज़ब्त लिखूंगा
मैं पहिये दो लिखूंगा, मैं पहिये चार लिखूंगा,
संग उसके बदलता में रिश्तेदारों का प्यार लिखूंगा
मैं सब लिखूंगा, पर न बारे धर्म लिखूंगा,
जिसने बाटा इंसान, उसके बारे अब मैं क्या लिखूंगा
आखिर में आकर, मैं अपना उसके साथ रब्त लिखूंगा,
जो वो समझे तो ठीक,नही तो करके साँसे ज़ब्त लिखूंगा
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