मेरे दिल के खाली कनस्तर में, एक रात छुपी बैठी है

आँखे नम है और होठो पे ब्याईया पड़ गई है जैसे
ऐसी कुर्बत में ज़िन्दगी कट रही है, दुनिया से अमीरी मिट गयी हो जैसे
पर ऐसा तो नही है क्योंकि लोगो की चमचमाती ज़िंदगियां सड़क पे अक्सर देखता हूँ मैं
पर फासले बहुत है उनकी कारो की खिड़की और मेरी सड़क किनारे भूख की बदज़ुबानी में
नही तो वो पक्का कुछ करते और ढूंढ निकालते गैरत जो गुलाबी नोटो तले छुपी बैठी है
मेरे दिल के खाली कनस्तर में, एक रात छुपी बैठी है

कुछ कदमो पे ही तो तुम्हारा कमरा सर्द होगा
मेरे यहाँ तो लू की मानो बौछार हो रखी है
सावन में तो तुम पहली बारिश के गीत सुन सो जाओगे
मैंने तो रात भर बच्चों को तरपाल से ढकने की जंग छेड़ रखी है
सर्दी में मुँह से भाप भी तो तुम्हे भाएगी
ऊपरवाले ने सिर पर छत्त जो दे रखी है
अब तो लगता है खुदा ने बनाये सब मौसम अमीरो के
और फिर उसकी खुदायी किसी ओर जहाँ में जा छुपी बैठी है
मेरे दिल के खाली कनस्तर में, एक रात छुपी बैठी है

मैं बैठा हूँ सड़क किनारे शोर बहुत है गाडियों का
भूख देकर छिपती दिखी ज़िन्दगी, लेकर सहारा इमारतों की झाड़ियो का
आज भी भरपेट खाना न दे पाया मैं, चाहे बिका हर बाज़ार मैं कौड़ियों का
इंसान को इंसान न बना सका खुदा, बस बना छोड़ा झुंड एक भेड़ियों का
सुबह उठकर जब देखा बच्चों ने, आटे के खाली कनस्तर में,
तो अब भी वहाँ रात थी, और पाया सुबह कई और छुपी बैठी है
मेरे दिल के खाली कनस्तर में, एक रात छुपी बैठी है

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