पलके कुछ भारी सी लगती है

पलके कुछ भारी सी लगती है
मानो वो पल आज भी लदे है इनपे
वो तुम्हारा मुस्कुराना
साथ बैठना और बस बाते करना
कई पंनो पे दर्ज है हमारे तुम्हारे किस्से
जो बैठ कर बुने थे संग हमने
वो जो बेशकीमती मालूम होता था
आज बिक गया एक-एक अक्षर रददी में
अब भी पलके कुछ भारी सी लगती है
मानो वो रददी आज भी टिकी है इनपे

बहुत ज़्यादा तो नही था
पर हा थोड़ा ही साथ आज बहुत जान पड़ता है
तुम्हे दिए नही थे तौफे मैंने कभी
इतना लायक न आज हू न तब था मै कभी
गर शामिल हो जाती लकीर तुम्हारी मेरे हाथ में
मालूम नही मुझे की शायद खुश होता की नही
शायद यही ताबीर मेरी रूह की है
यादो में ही जी लू ज़िन्दगी सभी
बिस्मिल्लाह करदे जो तू कभी मेरी याद को
पहुच जाएगी खबर मेरे तक सभी

एक ही छत तारो की है दोनो के सर
पर तुम किसी ओर कमरे में ज़िन्दगी मना रही हो
सुनता हू सजवाट काफी है तुम्हारे कमरे की
बस कभी देखो तो हाथ हिला देना, जो मुझे सुन पा रही हो
तुम्हारी मुस्कुराहटों के कांटे आज भी चुभते है मुझे
जितनी बार मुझसे दूर होकर तुम हँसी हो
जान जाओ की कुछ धड़कता है यहा सीने में
शायद तुम हो, या फिर यकीनन तुम ही हो

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