मेरे पास है
लिख के जो बयान हो जाये
कोई एसा दर्द मैं काश पालू
जो अल्फाज़ो में सिमट न पाए
ऐसे क्यों मर्ज़ मेरे पास है
उतारे उतरते नही है ये
तू ही बता किस हिस्से तेरे एहसान डालू
यादो का सूद जो चढ़ा रहे है मुझ पे
ऐसे क्यों क़र्ज़ मेरे पास है
हम बिस्तर हुई तेरी बातो को
किस तरह अपने आप को फिर सुनालू
वो जो प्यार से तुम मुझे देखती थी
सब नज़रे दर्ज मेरे पास है
सुबह तुम्हारी नज़रे भीड़ में मुझे जो ढूढती थी
कैसे वो पल में एक दम ही भुलालू
उन सुबहो की तुम्हारी आंखों की ललाहट
बैठी आज भी मेरे पास है
मेरा हाथ पकड कर वो बैठाती है
अब तुम ही बताओ कैसे उससे मुह फिरालू
इतने वादों के बाद तुम न रही संग मेरे
बिन वादों के भी तुम्हारी याद मेरे पास है
©hinsfn
Comments
Post a Comment