कभी ना लिखने का भी दिल करता है
कभी ना लिखने का भी दिल करता है
जो पिघला के लोहा भर दी है सांस ज़िन्दगी ने,
उसे हाफ के एक बार भरने को दिल करता है
कसूरवार ही हो मेरे लम्हे ये ज़रूरी तोह नही,
बिना गुनाहों के भी इनपे कभी इल्ज़ाम धरने को दिल करता है
कुछ सांसे तंग सा महसूस करने लगी है अब,
शायद भर गया है इनका मन तभी ना कुछ करने को दिल करता है
मेरी तमन्नाओं की मुनियाद अब पूरी जान पड़ती है
लटकते इनके पैर कबरगाहो में प्रतीत दिल करता है
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