हर धूप की एक छांव होती है

डगर पथरीली हो तो घाव देती है
बने जो रेत की तो पथिक को निशान देती है,
जो उठ उग पड़ते हो हर सहर
याद रहे, हर धूप की एक छांव होती है।

मूछे उची जाने-अनजाने अहंकार देती है
जो समय की चादर चीर दे, किसी यौवन में न वो धार होती है,
पलक भर की ज़िन्दगी रखने वाले ये परवाने
भूले न, की हर उम्र बीस की एक उम्र साठ होती है।

जो कभी किसी एक का न रहा, समय, जो तेरा अब हुआ
चेहरे पर खिलती हँसी तेरे बयान होती है,
पर याद रहे बंधु, काटा सांप का तो चाहे बच जाये फिर भी
काँटे के काटे की ना कोई सुनवाई होती है।

तुम्हे डराने की मेरी कोई अभिलाषा नही
बस चेतना भर देने की उम्मीद बांधता हूँ
जो पाओ तोह खूब पाओ
तोह फिर खोने से ना घबराओ।
की बढ़ती उम्र ही तो ज़िन्दगी की दस्तकारी होती है
चलो अब समझ भी जाओ, की,
हर धूप की एक छांव होती है


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