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एक हथेली और बढ़ा लेती है

कभी ना लिखने का भी दिल करता है

मेरे जलसे में तुम भी आना

मेरा दिल खानाबदोशों की बस्ती में

देखा है

मेरी स्याह काली रात में एक जुगनू जगमगाया है

सस्ती लिखावट

यू तो हँस लेता हू

गुजारिश

रेशम की तारे...

ये लो एक ओर शहर छोड़ चला मै