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देखा है

मेरी स्याह काली रात में एक जुगनू जगमगाया है

सस्ती लिखावट

यू तो हँस लेता हू

गुजारिश

रेशम की तारे...

ये लो एक ओर शहर छोड़ चला मै

पलके कुछ भारी सी लगती है

कभी तो धूप होगी

मेरे दिल के खाली कनस्तर में, एक रात छुपी बैठी है

वो इक रोज़ आज भी आया था