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पलके कुछ भारी सी लगती है

कभी तो धूप होगी

मेरे दिल के खाली कनस्तर में, एक रात छुपी बैठी है

वो इक रोज़ आज भी आया था

मेरे मन के किनारो पे

वो दरवाज़ा खुला रखती है

ये आज ना पूछो

मैं घर का वो सामान जो पीछे छूट गया

की मेरी ईमानदारी के क़सीदे कुछ यू पढ़े गए

मैं लिखूंगा

वो जो रेत का एक टीला हुआ करता था