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Ek shaam budhi jehi

मेरे मुँहासे

मेरे घर के चार कमरे

कश्तियाँ दूर छोड़ आया हूँ

वफ़ा

मेरी रबी खरीफ की फसलों में

रब्त

कश्तियाँ दूर छोड़ आया हूँ

बेबस बहुत है इंसा

मेरे पास है

एक हथेली और बढ़ा लेती है