कश्तियाँ दूर छोड़ आया हूँ
कश्तियाँ दूर छोड़ आया हूँ
ये कह कर सूरज फिर समन्दर में डूब गया
वो बुझा गया सारी बत्तियां कमरें की
सिमटा के बिखरीं किरणे अपनी वो क्या खूब गया
मख़मली कोयलें-सी उढा गया तश्तरी वो
मखाने ईद के जड वो अम्बर में, कुछ इस तरह गया
के मालूम लगे देखने वालो को,
नजाने कौन मोगरे घने गेसुओं में यू गूंध गया
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